________________
३० देववंदन नाष्य अर्थसहित. ( एग के ) एकत्व एटले एकाग्रपणुं ते पण प्रणिधानत्रिक कहीये. शहां शिष्य पूजे के चै त्यवंदनायें प्रणिधान आवे , अने वीजी शेष वंदना तो प्रणिधान विनाज थाय , तिहां ए बोल सचवाता नथी ते केम? तेने गुरु कहे , के तिहां मन, वचन अने कायानी एकाग्रता ले ए मुख्य प्रणिधान ले ए दशमुं प्रणिधान त्रिक कह्यु.
हवे (सेस के ) शेष रह्या जे (तिय के०) त्रिक एटले आहीं गाथायें करी जेन स्वरूप नह। वखाण्यु एवं बीजं अने सातमुं त्रिक, तेनो (अ बो के०) अर्थ ते (न के) वली (पयमुत्ति के) प्रकट , माटे तेनु स्वरूप मूल गाथामां लख्यु नथी, एम जामवं. तथापि बालावबोधकर्तायें ते त्रिकोना अनुक्रमें संक्षेप अर्थ ते ते स्थानके ल ख्या , एटले दशत्रिकनु ए प्रथम मूल हार थयु अने उत्तर बोल त्रीश श्रया ॥ १ ॥ हवे बोनुं पांच प्रकारना अनिगम, हार कहे .
सचित्त दव मुऊण, मचित्त मणुऊणं