Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 10
________________ (5) चैत्य पुरुष जग जाए। देव! तुम्हारा पुण्य नाम, मेरे मन में रम जाए ।। 1. ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ उद्गाता, अर्ह अहँ अर्ह अर्ह अर्ह अहँ त्राता। ॐ ह्रीं श्रीं जय, ॐ ह्रीं श्रीं जय विजय ध्वजा लहराए।। 2. ॐ जय भिक्षु, भिक्षु जय ॐ ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं, विघ्न शमन ॐ, व्याधि शमन ॐ, क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं। नाम मंत्र तव व्रण संरोहण सतत अमृत बरसाए ।। 3. मिटे विषमता मन की, तन की, अनुभव की, चिन्तन की, पल-पल पग-पग मिले सफलता तन्मयता चेतना की। नाम मंत्र तव भयहर विषहर साम्य सिंधु गहराए ।। 4. 'आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है', तुमने मंत्र पढ़ाया, आत्मा अचल अरुज शिव शाश्वत, नश्वर है यह काया। आत्मा आत्मा के द्वारा ही, आत्मा में लय पाए।। 5. तुम निरुपद्रव हम निरुपद्रव, तुम हम सब हैं आत्मा , तव जागृत आत्मा से हम सब बन जाएं परमात्मा। ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं हूं ह्रः, अन्तर्मल धुल जाए ।। लय : संयममय जीवन हो... संदर्भ : गंगाशहर में संसारपक्षीय माता साध्वी बालूजी के अनुरोध पर आचार्य भिक्षु की स्मृति में रचित गीत आषाढ, वि.सं. 2028 चैत्य पुरुष जग जाए 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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