Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 12
________________ (7) दरसण पायो रे, मन हुलसायो रे, पल-पल मन में गुरुवर! थारो ही आभास रे। थे ही म्हारै धरती प्रभुवर! थे ही हो आकाश।। दरसण पायो रे... 1. मैं आयो, थे स्वर्ग सिधाया, ओ के बण्यो विलास रे। मन री मन में रैगी, देख न पायो अमल उजास।। दरसण पायो रे... 2. पंचम आरे जनम लियो, पण पूर्ण हई है आस रे। मिलग्यो तेरापंथ संतवर! बुझगी अंतर प्यास ।। दरसण पायो रे... 3. अनुशासन रो कवच बणाकर, मर्यादा रो श्वास रे। संघपुरुष नै कर्यो चिरायु, सार्थक बण्यो विकास ।। दरसण पायो रे... 4. साधन शुद्धी री दे शिक्षा, रच्यो अलौकिक रास रे। कियां करै सूवै रो पिंजड़ो, दीपक जियां प्रकाश ।। दरसण पायो रे... 5. अद्भुत व्याख्या दया दान री, करयो हृदय में वास रे। साक्षात्कार हुयो प्रभुवर रो, सिद्ध सहज अभ्यास।। दरसण पायो रे... 6. विघ्न-हरण रो मंत्र मिल्यो, प्रभवर आयो जद पास रे। थारै वचनां में ही म्हारो, है पूरो विश्वास।। दरसण पायो रे... 7. भिक्षु और जय गणि दोनां रो, तुलसी में उच्छ्वास रे। 'महाप्रज्ञ' भैक्षव-सासण रो बधतो जावै व्यास ।। दरसण पायो रे... लय : मनड़ो लाग्यो रे... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2052 चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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