Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 50
________________ (42) स्वामी! शासनश्री बन तुम आए, गौरवमय चित्र बनाए, पाया जन-जन ने श्री वरदान है, हो ऋषिवर! भैक्षव गण को तुम पर अभिमान है। 1. तेरापंथ प्रवर्तक गुरु के शक्तिपात की रेखा, ऊर्ध्वारोहण की घटना को सबने सस्मय देखा। स्वामी ! पारसमणि गुरु की वाणी, मानव जीवन कल्याणी, परिवर्तन शाश्वत का संधान है।। 2. आर्य भिक्षु जय गणि की धारा के तुम सेतु बने हो, कनकोज्ज्वल इतिहास संघ का ऋषि तुम केतु बने हो। स्वामी! कैसी भीखण की माया, कैसा मंदार उगाया, देखो यह कुसुम सदा अम्लान है।। 3. जयाचार्य ने कहा--भिक्षु से मिलन नहीं हो पाया, शब्द शक्ति के माध्यम से तुमने साक्षात कराया। स्वामी! कैसा तर्कामृत प्याला, कैसा दृष्टान्त निराला, जीवन-यात्रा का नव अभियान है।। 4. संघ संपदा का संवर्धन दिन-दिन होता जाए, नए-नए उन्मेष प्रगति के आंखों में लहराए। स्वामी! शुभ साध्य मूर्त बन जाए, मृदुता नव जीवन पाए, कण-कण में कोमल कलि का तान है।। 5. आगमवेत्ता तत्त्वज्ञानी विश्रुत चर्चावादी, जीत सका है कौन हेम को, वचन स्वयं संवादी। स्वामी! कहलाए हेम हजारी, साधी गुरु से इकतारी, हर घट में बिंबित विद्यादान है।। चैत्य पुरुष जग जाए 49. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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