Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 42
________________ (35) जगा जन-गण-मन में विश्वास रे, आश्वास रे, होगा दिव्य अब है अभ्रमुक्त आकाश रे, होगा दिव्य अब 1. शिष्यों को आधार दिया है, शिष्यों का आभार लिया है, विनिमय के इस महामंत्र ने रचा नया इतिहास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। प्रकाश । उल्लास रे, 2. अर्जन कैसा हो न विसर्जन, सलिलहीन बादल का गर्जन, त्यागहीन संग्रह के तरु में, क्या होती कहीं सुवास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। 4. संवेदन का सूत्र स्वस्थ चेतना के 3. अगर चाहते हिंसा कम हो, जीवन शैली सहज सुगम हो, एकमात्र है पंथ विसर्जन, नव युग का आभास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। प्रकाश । । चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International पिरोता, बहता है करुणा का सोता, अंबर में होता सदा विकास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 5. कूप नहीं जाएगा घर-घर, प्यासा आएगा पनघट पर, आज सुलभ नल का जल घर-घर, प्रतिभा का आयास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 6. जो न हुआ वह हो पाया है, कोई पैगम्बर आया है, ले मशाल नैतिक मूल्यों की, परिमल सुरभित-श्वास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 7. तुलसी का जीवन जीना है, धागा बन सबको सीना है, 'महाप्रज्ञ' की हर गतिविधि में, तुलसी का उच्छ्वास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । लय: धरा पर उतरा स्वर्ग विमान... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस दिल्ली, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2056 For Private & Personal Use Only 41 www.jainelibrary.org

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