Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 44
________________ (37) मेरी जिज्ञासा है उत्तर दो प्रभु, अवसर आया है, मेरी आशंसा को पूर्ण करो अब अवसर आया है।। 1. चार वर्ष के बीत गए हैं, वे सारे दिन रात, अब तो मानस की कुटिया में आए नया प्रभात रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 2. भैक्षव गण में देव ! तुम्हारा कितना था विश्वास, कितना एकीपन आकर्षण श्वास-श्वास उल्लास रे। इचरज की माया है, मेरी जिज्ञासा है... 3. नई कल्पना, नई योजना प्रतिदिन का उच्छ्वास, चिन्तन कर कर देव ! सुमन का होता सतत विकास रे। अब स्मृति की छाया है, मेरी जिज्ञासा है... 4. मैं जो कुछ भी बन पाया हूं, वह प्रेरक वर हाथ, खोज रहा हूं, वही प्रेरणा दो प्रभु मेरा साथ रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 5. किसे बताऊं मन की बातें, किससे करूं विमर्श, पथ दर्शन वह किससे पाऊं, जिससे हो उत्कर्ष रे। तन-मन ने गाया है, मेरी जिज्ञासा है... 6. उस दुनिया के नियम बताओ, जिसमें आज निवास, कैसे हो साक्षात् देवते ! कण्ठ-कण्ठ में प्यास रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 7. याद रहो तुम, याद रहें हम, समझें इसका अर्थ, 'महाप्रज्ञ' की अन्तःस्फुरणा होगी सदा समर्थ। अनुभव गहराया है, मेरी जिज्ञासा है... लय : म्हारो हीरा जड़ियो आंगणियो... ___ संदर्भ : आचार्य तुलसी चतुर्थ पुण्य-तिथि राजलदेसर, 9 जून 2001, आषाढ कृष्णा 3, वि.सं. 2058 चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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