Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 46
________________ (39) देव दो हस्तावलंबन, आत्म का साक्षात पाऊं । सो रहे इस सिंह शिशु को, आज मैं फिर से जगाऊं।। 1. मैं स्वयं चेतन सघन हूं, मैं स्वयं आनंदघन हूं। देह की इस मरुधरा में, चैत्य की सरिता बहाऊं।। 2. कौन हूं, आया कहां से, है कहां जाना यहां से। सत्य की गहराइयों में, उतर प्रभु को ढूंढ लाऊं।। 3. दीखता जो वह अचेतन, दृष्टि में आता न चेतन। कौन है फिर शत्रु मेरा, मित्र मैं किसको बनाऊं।। 4. मैं विभावों में पला हूं, मैं स्वभावों से छला हूं। ___ मैं स्वयं मेरे अहं को, आज चिन्मय में मिलाऊं ।। 5. सफल हो अभियान मेरा, अमल हो अवधान मेरा। देव तुलसी की शरण में, अमिट की लौ मैं जलाऊं।। लय : भावभीनी वन्दना..... संदर्भ : संसारपक्षीय माता साध्वी बालूजी के अनुरोध पर आचार्य तुलसी की अभिवंदना में रचित गीत गंगाशहर, आषाढ, वि.सं. 2028 चैत्य पुरुष जग जाए ॐ 8890385833668 245 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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