Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 20
________________ (15) जीवन का निर्माण, हमको करना है जी, करना है। अपना अनुसंधान, हमको करना है जी, करना है। संयम का सम्मान, हमको करना है जी, करना है। अनुशासन का मान, हमको करना है जी, करना है। सेवा का बहुमान, हमको करना है जी, करना है। श्रम का पुनरुत्थान, हमको करना है जी, करना है।। mmmm 1. जिन शासन का मंत्र, हमने पाया है जी, पाया है। भैक्षवगण का तंत्र, कर में आया है जी, आया है।। 2. तुलसी का नेतृत्व, है वरदान बना, वरदान बना। तेरापथ कर्तृत्व, है अवदान बना, अवदान बना।। 3. अनेकान्त संयुक्त, जीवन दृष्टि बने जी, दृष्टि बने। वाद-विवाद विमुक्त, सारी सृष्टि बने जी, सृष्टि बने।। 4. अणुव्रत का संगान, फैले जन-जन में जी, जन-जन में। प्रेक्षा का अनुदान, व्यापे मन-मन में जी, मन-मन में।। 5. मर्यादोत्सव आज, हम हैं आभारी जी, आभारी। विश्वभारती राज, लाडनूं सुखकारी जी, सुखकारी।। लय : चांद चदयो गिगनार... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव लाडनूं, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2037 चैत्य पुरुष जग जाए 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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