Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur

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Page 28
________________ (22) भीखणजी स्वामी! अभिनव मर्यादा दो अब संघ को। सहनशील बन ले सकें प्रभु, हम सब सुख की सांस हो।। 1. सहनशीलता ही रहे, बस उन्नति का आधार...हो। तेरापथ की सृष्टि का यह, सर्वोत्तम उपहार...हो।। भीखणजी स्वामी !... 2. श्रद्धा के युग में लिखा प्रभु, तुमने प्रवर विधान...हो। __तार्किक युग में हो रहा, यह मर्यादा का मान...हो।। भीखणजी स्वामी !... 3. भारमल्ल ही बन रहे प्रभु, भारमल्ल के तुल्य...हो। जयाचार्य से ही बढ़ा, वर मर्यादा का मूल्य...हो।। भीखणजी स्वामी !... 4. हेम, खेतसी संत का प्रभु, जिन हाथों निर्माण...हो। ___ उन हाथों से ही भरो प्रभु, गण उपवन में प्राण...हो।। भीखणजी स्वामी !... 5. दिव्य प्रशिक्षण का बना प्रभु, कैसे यह इतिहास...हो। कैसे जागी संघ में प्रभु, अनुशासन की प्यास...हो।। भीखणजी स्वामी !... 6. तव शासन में ही हुआ प्रभु, तुलसी का अवतार...हो। जिनके चिंतन-मनन से प्रभु, खुले प्रगति के द्वार...हो।। भीखणजी स्वामी !... 7. संघ शक्ति की वृद्धि में प्रभु, व्यक्ति-व्यक्ति का योग...हो। __ व्यक्ति-प्रतिष्ठा का कभी प्रभु, लगे न गण को रोग...हो।। भीखणजी स्वामी!... 8. भक्ति भरी उस शक्ति का प्रभु, मुश्किल है अनुमान...हो। प्राणवान अब बन गया प्रभु, सरिता का संगान...हो।। भीखणजी स्वामी !... 9. शक्तिपीठ की शक्ति का है, महाप्रज्ञ आभार...हो। मर्यादोत्सव से हुआ प्रभु, गंगाणा गुलजार...हो।। भीखणजी स्वामी !... लय : भीखणजी स्वामी भारी मर्यादा बांधी... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव गंगाशहर, 31 जनवरी, 2001 माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2057 चैत्य पुरुष जग जाए 8 3999999999999927 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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