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लगी व एक वर्ष तक साधना पथ का अनुभव करके सं० १६६६ में दिल्ली नगर में माघ पदी सप्तमी को ५० पू० जतनश्रीजी म. सा० के कर-कमलों से दीक्षा ली। दीक्षित करके परम पूज्या अनुपम श्रीजी म. सा. की शिप्या पुप्पा भी नी नाम रखा गया।
दीक्षा ग्रहण करने के बाद आपका पहला चातुर्मास मुमनु (शेखावटी) नगर में प० पू० विचक्षणश्रीजी म. सा. के साथ हुआ । यहाँ पहले चातुर्मास में ही आप काफी अस्वस्थ रहे।
आपको समहणी नामक व्याधि से कप्द उठाना पड़ा। मुमनु में ही द्वितीय चातुर्मास में आपने मासक्षमण तप किया। फिर वहाँ से पू० विचक्षणीजी म. सा. के उपचार हेतु आप सनके साथ फतहपुर नगर पधारी । पू० विचक्षण श्री जी म. सा. के स्वास्थ्य राम के पश्चात् आप बीकानेर नगर में सेठ मेरुदानजी कोठारी द्वारा नीर महावीरके मन्दिर के प्रतिष्ठा महोत्सव घ छोटी घाई (विनयेन्द्रनीली) के दीक्षा अवसर पर पू० विचक्षणश्रीजी के साय यीकानेर नगर पधारे। यहाँ आपने पू० दयाश्रीजी म. सा. को घेयाषच्च की। बीकानेर नगर में मापको पुन संग्रहणी रोग हो गया। स्वास्थ्य लाभ के पश्चात आप पृ० जतनश्रीजी म. सा. की सेवा हेतु श्री विनीताश्रीजी के माय दिही पधारे। मं० २००४ में दिल्ही चातुर्मास में आपने पुन' मामलमण तप किया। वर्षों से पृ० यात्रीजी मसा की सेवा हेतु पाप फिर पोकानेर पधारे। रास्ते में व्यापर नगर में दी श्री हरि