Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ ७५. जो तत्त्व से बंधेगा, वही वास्तविक साथी होगा। ७६. युद्धक्षेत्र में पर को जीता जाता है और धर्मक्षेत्र में स्वयं को। ७७. विषय का सर्वांग अनुशीलन ही द्वन्द्व और संघर्ष से बचने का एकमात्र उपाय है। ७८. जिन्हें त्रिकाली सत् का परिचय नहीं, वे सत्पुरुष नहीं; उनकी संगति भी सत्संगति नहीं है। ७६. जिनवाणी का अध्ययन उलझना नहीं, सुलझना है और पण्डित बनना हीनता की नहीं, गौरव की बात है। ८०. रुचि ध्यान की नियामक है। ८१. नारी सहज श्रद्धामयी भावनाप्रधान प्राणी है। ८२. जिसके हृदय में अपराध भावना होती है, उसकी आँख नीची हुए बिना नहीं रहती। (१३)

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