Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 34
________________ २७६. निज आत्मा के ध्यान बिन बस निर्जरा है नाम की। २७७. बोधिदुर्लभ भावना का सार निजतत्त्व को पहिचानना ही है। २७८. दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप बोधि ही इस जगत में दुर्लभ है। २७६. बोधिदुर्लभ शब्द का अर्थ धर्म नहीं, धर्म की दुर्लभता है। २८०. आध्यात्मिक जीवन का आधार एक शुद्धात्मा की साधना है। २८१. इन्द्रिय सुख तो सुखाभास है, नाम मात्र का सुख है। २८२. चाहे इन्द्रिय का भोगपक्ष हो, चाहे ज्ञानपक्ष दोनों में क्रम पड़ता है। २८३. वस्तु उसे कहते है, जो कभी मिटे नहीं, सदा सतरूप से ही रहे। २८४. गलती सदा ज्ञान या वाणी में होती है, वस्तु में नहीं। २८५. वस्तु में असत्य की सत्ता ही नहीं है। २८६. ज्ञान का कार्य तो वस्तु जैसी है वैसी जानना है। ___ (३३) .

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