Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ २८७. वस्तु में अच्छे-बुरे का भेद करना राग-द्वेष का कार्य है। २८८. एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ भी भला-बुरा नहीं कर सकता, यह दिगम्बर धर्म का अपमान नहीं सर्वोत्कृष्ट सम्मान है; क्योंकि वस्तुस्वरूप ही ऐसा है। २८६. वस्तु के सहज परिणमन का ध्यान आते ही सहज शांति उत्पन्न होती है। २६०. विवक्षा-अविवक्षा वाणी के भेद हैं, वस्तु के नहीं। २६१. प्रत्येक द्रव्य का परिणमन स्वयं के कारण स्वयं से होता है। २६२. निरन्तर परिणमन ही द्रव्य का जीवन है। २६३. स्वभाव में तो अपूर्णता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। २६४. कोई भी अपने परिणमन में परमुखापेक्षी नहीं है। २६५. अपूर्णता के लक्ष्य से पर्याय में पूर्णता की प्राप्ति नहीं होती। २६६. पर्यायों का सुधार तो द्रव्याधीन है। (३४)

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41