Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 38
________________ ३१७. निमित्तों को दोष देना ठीक नहीं, अपनी पात्रता का विचार करना ही कल्याणकारी है। ३१८. स्याद्वाद संभावनावाद नहीं, निश्चयात्मक ज्ञान होने से प्रमाण है। ३१६. स्याद्वाद में कहीं भी अज्ञान की झलक नहीं है। ३२०. ध्यान चारित्र का सर्वोत्कृष्ट रूप है। ३२१. ध्यानमुद्रा ही धर्ममुद्रा है, सर्वश्रेष्ठ मुद्रा है। ३२२. केवल स्वयं की साधना आराधना ही धर्म है। ३२३. ध्यान की अवस्था में ही सर्वज्ञता की प्राप्ति होती है। ३२४. ध्येय का स्वरूप स्पष्ट हुए बिना ध्यान संभव नहीं है। ३२५. चिन्तन ध्यान का प्रारम्भिक रूप है। ३२६. कक्षाएँ ज्ञान की लग सकती हैं, ध्यान की नहीं। ३२७. ध्यान के लिए एकान्त चाहिए, भीड़ नहीं।

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