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१३०. भीड़ तो भयाक्रांत भोगी चाहते हैं, निर्भय योगी नहीं। १३१. शत्रु-मित्र के प्रति समभाव रखनेवाले साधु ही सच्चे साधु हैं। १३२. साधु को श्रुत के सागर की अपेक्षा संयम का सागर होना
अधिक आवश्यक है। १३३. साधु बनना अभिनय है, साधु होना वस्तुस्थिति है। १३४. बिना आत्मज्ञान के तो कोई मुनि बन ही नहीं सकता। १३५. दिगम्बर कोई वेष नहीं है, सम्प्रदाय नहीं है; वस्तु का
स्वरूप है। १३६. दिगम्बर मुनिधर्म ही दिगम्बर आम्नाय का मूल आधार है। १३७. वीतरागी नग्न दिगम्बर साधु भी हमारे सिरमौर हैं। १३८. मुनिजन क्षमा के भण्डार होते हैं। १३६. सच्चा साधु होना सिद्ध होने जैसा गौरव है। १४०. साधुता बंधन नहीं है, उसमें सर्वबंधनों की अस्वीकृति है।
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