Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ १८३. आत्मानुभूति ही समस्त जिनशासन का सार है । १८४. जिनमत का वास्तविक प्रवर्तन तो आत्मानुभव ही है । १८५. आत्मानुभूति ही सुखानुभूति है । १८६. आत्मतन्मयता ही आत्मानुभूति का उपाय है। १८७. आत्मानुभूति को प्राप्त करने का प्रारम्भिक उपाय तत्त्वविचार है । १८८. आत्मानुभूति की दशा शुद्धभाव है और आत्मानुभूति प्राप्त करने का विकल्प शुभभाव । १८६. ज्ञान से भी अधिक महत्त्व श्रद्धान का है, विश्वास का है, प्रतीति का है । १६०. श्रद्धा ही आचरण को दिशा प्रदान करती है। १६१. ज्ञान तो पर को मात्र जानता है, परिणमाता नहीं है । १६२. ज्ञान का कोई भार नहीं होता । २४

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