Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ २२०. वीतरागता ही वास्तविक शौचधर्म है। २२१. सबसे खतरनाक कषाय लोभ है और सबसे बड़ा धर्म शौच है। २२२. प्रेम या प्रीति भी लोभ के ही नामान्तर हैं। २२३. यश के लोभियों को प्रायः निर्लोभी मान लिया जाता है। २२४. लोभी व्यक्ति मानापमान का विचार नहीं करता। २२५. लोभ तो पाप नहीं, पाप का बाप है। २२६. सत्य कहते ही उसे है, जिसकी लोक में सत्ता हो। २२७. सत्य का उद्घाटन सत्य को समझना ही है। २२८. सत्य की प्राप्ति स्वयं से, स्वयं में, स्वयं के द्वारा ही होती है। २२६. सत्य को स्वीकार करना ही सन्मार्ग है। २३०. सत्य के खोजी को सत्य प्राप्त होता ही है। २३१. समझौते का आधार सत्य नहीं, शक्ति होती है। (२८)

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