Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 28
________________ २१२. प्रशंसा निंदा से अधिक खतरनाक है। २१३. छोटे-बड़े की भावना मान का आधार है। २१४. मान का आधार 'पर' नहीं, पर को अपना मानना है। २१५. मान एक मीठा जहर है। २१६. जिसका मान होता है उसकी सत्ता हो ही, यह आवश्यक नहीं। अतः धन मद होने के लिए धन की उपस्थिति आवश्यक नहीं। २१७. जगत के कायिक जीवन में उतनी विकृति नहीं, जितनी की जन-जन के मनों में है। २१८. लौकिक कार्यों की सिद्धि मायाचार से नहीं, पूर्व पुण्योदय से होती है। २१६. जो जिसका कर्ता-धर्ता-हर्ता नहीं है, उसे उसका कर्ताधर्ता-हर्ता मानना ही अनन्त कुटिलता है। (२७)

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