Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 31
________________ २४३. विनय अपने आप में महान आत्मिक दशा है। २४४. वास्तविक स्वाध्याय तो आत्मज्ञान का प्राप्त होना ही है । २४५. आत्माराधना ही वस्तुतः परमार्थप्रतिक्रमण है। २४६. त्याग धर्म है और दान पुण्य । २४७. पर को पर जानकर उनके प्रति राग का त्याग करना ही वास्तविक त्याग है। २४८. त्याग तो अपवित्र वस्तु का ही किया जाता है। २४६. त्याग के लिए हम पूर्णतः स्वतन्त्र हैं। २५०. बिना माँगे दिया गया दान सर्वोत्कृष्ट है । २५१. दान निर्लोभियों की क्रिया थी, जिसे यश और पैसे के लोभियों ने विकृत कर दिया है। २५२. अपरिग्रह का उत्कृष्टरूप नग्न दिगम्बर दशा है। २५३. ब्रह्मचर्य तो एकदम अंतर की चीज है, व्यक्तिगत चीज है । ३०

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