Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ १६१. साधकों की साधना का एकमात्र आधार शुद्धात्मा है। १६२. आत्मज्ञान और आत्मध्यान आत्मा के सहज धर्म हैं। १६३. आत्मा का दर्शन, ज्ञान और ध्यान ही आत्मा में स्थापित होना है। १६४. पर परमात्मा चाहे कितना ही महान क्यों न हो, उसमें सर्वस्व समर्पण सम्भव नहीं है, उचित भी नहीं है। १६५. सभी आत्मा स्वयं परमात्मा हैं, परमात्मा कोई अलग नहीं होते। १६६. आत्मा की सच्ची जीत तो मोह-राग-द्वेष के जीतने में है। १६७. चित्त को जीत लेनेवालों को छह खण्डों की नहीं, अखण्ड — आत्मा की प्राप्ति होती है। १६८. मात्र मान्यता सुधारने को ही आत्मा का हित कहते हैं। १६६. संयोगों की विनाशीकता भी आत्मा के हित में ही है। . (२२)

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