Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 21
________________ १४१. आत्मा का ध्यान ही धर्म है। १४२. ज्ञान आत्मवस्तु का स्वभाव है; अतः ज्ञान धर्म है। १४३. धर्म परम्परा नहीं, स्वपरीक्षित साधना है। १४४. धर्म परिभाषा नहीं, प्रयोग है और जीवन है धर्म की प्रयोगशाला। १४५. धर्म का आधार तिथि नहीं, आत्मा है। १४६. धर्म अविरोध का नाम है, विरोध का नहीं। १४७. दिगम्बर जैनधर्म आत्मा का धर्म है, शरीर का नहीं। १४८. मुक्ति का मार्ग शान्ति का मार्ग है, तनाव का नहीं, व्यग्रता का नहीं। १४६. एक वीतरागभाव ही निरपराध दशा है; अतः वह मोक्ष का कारण है। १५०. मोक्ष आत्मा की अनन्त आनन्दमय, अतीन्द्रिय दशा है। (२०)

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