Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ १२३. मंदिर के विकृत हो जाने से उसमें विराजमान देवता विकृत नहीं हो जाते। १२४. भगवान धर्म की स्थापना नहीं करते, वरन् धर्म का आश्रय लेकर आत्मा से परमात्मा बनते हैं। १२५. हम मूर्ति के नहीं, मूर्ति के माध्यम से मूर्तिमान (वीतरागी ___सर्वज्ञ भगवान) के पुजारी हैं। १२६. शास्त्र का मर्म समझने के लिए बुद्धि की तीक्ष्णता चाहिए। १२७. समाज के जागृत रहने पर ही तीर्थ सुरक्षित रहेंगे और जीवन्त तीर्थ जिनवाणी भी सुरक्षित रहेगी। १२८. एकमात्र नग्नता ही (मुक्ति का) मार्ग है, शेष सब उन्मार्ग हैं। १२६. जो अपने गुरु का निर्णय भी स्वयं से नहीं करना चाहता है, उसका ठगाया जाना तो निश्चित ही है।

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