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६८. भटकना श्रद्धा का दोष है और अटकना चारित्र की कमजोरी है।
६६. वस्तुतः बंधन की अनुभूति ही बंधन है ।
७०. पवित्र कहते ही उसे हैं, जिसको छूने से छूनेवाला पवित्र हो जाए । ७१. भगवान आत्मा की बात समझाना, भगवान आत्मा के दर्शन करने की प्रेरणा देना, अनुभव करने की प्रेरणा देना, आत्मा में ही समा जाने की प्रेरणा देना ही सच्चा प्रवचन है ।
७२. सम्यक् समझ बिना ग्रहण और त्याग संभव ही नहीं है । ७३. धार्मिक पर्व तो वीतरागता की वृद्धि करनेवाले संयम और साधना के पर्व हैं । ७४. अभाव का अनुभव करनेवाला असन्तुष्ट और अनुभव करनेवाला सन्तुष्ट नजर आता है।
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सद्भाव का