Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi Author(s): Ramnath Dwivedi Publisher: Ramnath Dwivedi View full book textPage 7
________________ आमुग्मिक । लौकिक अर्थ में संतानोत्पादन की क्रिया द्वारा अनुबंध या सातत्य ( Continuity of species ) का बना रहना समझना चाहिए। दूसरे अर्थात् अलौकिक अर्थ मे पूर्व-जन्म और पर-जन्म का परस्पर में अनुबंध बना रहना समझना चाहिए । इसी अधिार पर आयु का यह पर्याय जन्मानुबंध है। __ इन पर्यायों को यदि आयु का पृथक-पृथक लक्षण माना जाय तो इन पंचलक्षणों से युक्त अवस्था जोव की होगी। इसके विपरीत मृत या निर्जीव की। जीव-विद्या ( Biology ) के सिद्धान्तों के आधार पर इस सिद्धान्त की तुलना नीचे की जा रही है। आधुनिक शब्दों में आयु की व्याख्या करनी हो तो उसे जीवन या Life कह सकते है। उससे युक्त द्रव्य को जीवित या Living कहते हैं। जीवविद्या विशेषज्ञ जीवित पदार्थ मे निम्नलिखित भावों की उपस्थिति आवश्यक मानते है १ वृद्धि ( Growth )-परन्तु वृद्धि का गुण निर्जीव कंकड और पत्थरों मे भी मिल सकता है अत. जीव का यह कोई विशिष्ट चिह्न नही है। २. गति ( Movement )-प्रायः सजीव पदार्थों में ही पाया जाता है। इसी गति के आधार पर जीवित चर या चल की संज्ञा दी जाती है। कुछ सीमित स्वरूप की गति अचर सृष्टि के वृक्ष आदिकों में भी मिलती है । तथापि नित्य गतिशील होना एक जीव का आत्मलिङ्ग है अतएव ऊपर लिखे आपवचनों में नित्यग का पर्याय कथन आयु के अर्थ में प्रतीत होता है। -.-३. चैतसतत्त्व या आयुमूल ( Protoplasm.)-सजीव और निर्जीव सबसे बडा भेद करने वाला यह तत्व है। यह जब तक सक्रिय है-आयु है। उसके निष्क्रिय होते ही मृत्यु हो जाती है। प्राचीनों का शरीर सत्वात्म संयोग आयु है' का कथन बहुत कुछ इसी विशिष्ट 'तत्त्व की ओर इंगित करता है। चेतनातत्व के अभाव मे मनुष्य या जीवों के शरीर और इंद्रिय प्रभृति सभी द्रव्यों के यथापूर्व रहते हुए भी वह मृत और निश्चेष्ट हो जाता है। पंचभूतावशेपेषु पंचत्वं गतमुच्यते । यही कारण है कि ऊपर लिखे आर्पवचन मे आयु के पर्याय मे 'सत्वात्मसंयोग' शब्द का कथन हुआ है। यह चैतसतत्त्व स्थावर तथा जंगम दोनों सृष्टि में समान भाव से पाया जाता है। शरीर असंख्य कोपाणुओं से निर्मित है । कोषाणुओं के भीतर चैतसतत्व भरा रहता है । अंतर इतना ही होता है कि स्थावर सृष्टि में कोपाणुओं के चारों ओर एक भित्ति (Cellular wall ) होती है, परन्तु चर-सृष्टि में ये भित्तियों या आवरण नहीं रहते।।Page Navigation
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