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देवांगना स्वरूप
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बायीं ओर मुड़ा हुआ होता है । ८. विन्यासा:
दोनों हाथों की हथेलियां और दाहिना पैर, बायीं ओर मुड़ा हुआ होता है। ९. केतकी भरणा
मुख बायीं ओर मुडा हुआ, विधिचिता जैसा। दाहिना हाथ माथे पर और बायां हाथ मुख तक मुड़ा हुआ। १०. मातृभूति :
सारा अंग दाहिनी ओर झुका हुआ और दो हाथ में बालक लिए हुए। चामराः
दायीं ओर मुख किये, बायें मुड़े हुए हाथों में चामर ली हुई मूर्ति का दाहिना हाथ पैर तक सीधा। १२. गुंठना:
पीठ दिखाती हुई, बालों की लंबी चोटीवाली, बांया पर किसी दूसरी शिल्पाकृति पर टिकाये हुए, और दाहिना पैर सीधा होता है। बायां हाथ मस्तक के ऊपर, दायें स्कंध तक होता है।
११.
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९ केतकी भरणा
१० मातृभूति
११ चामरा
१२ गुंठना
१३. नर्तकी:
बायीं और मुख, दो हाथ माथे पर, दाहिना पैर सीधा और बायां पैर कटि से मुड़ा हुआ। १४. शुकसारिका:
दाहिना हाथ स्कंध की भोर किये हुए, उस पर शुक (तोता) बिठाया हुआ। बायां पैर ऊंचा और दायां पैर स्थिर।
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