Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 238
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन प्रकरण २०३ ऊपर के तीसरे प्राकार में श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी रहते हैं। तीसरे प्राकार के ऊपर मध्य में सिंहासन पर प्रभु विराजमान होते है। मध्य में अशोक वृक्ष होता है। प्रत्येक प्राकार के चारों ओर द्वार होता है। द्वार के दोनों मोर बावडी होती है। प्रथम प्राकार के द्वार का प्रतिहार (द्वारपाल),१ तुंबरु २ कपाली ३ खटवाङ्गी ४ जटामुकुटधारी एक-एक होता है। दूसरे प्राकार के द्वार की प्रतिहारिणी १जया २विजया ३ प्रजिता ४अपराजिता एक-एक द्वार पर है। उन्होंने भुजाओं में अभय-पाश-ग्रंकुश और मुग्दर धारण किया है। उनका वर्ण अनुक्रमे श्वेत,रक्त, सुवर्ण, नील है। नीचे के प्राकार के चारों द्वारों पर पूर्वीद क्रमे दो दो प्रतिहार (द्वारपाल) होते हैं। पूर्व में इंद्र और इंद्रजय, दक्षिणे महिंद्रविजय, पश्चेिमे धरणेद्रपद्मक और उत्तरे सुनाम सुरदुंदुभि है। नंदीधर द्वीप की रचना मेरो saey नंदीवरही दीदीप उपना NANDISWAR DWIP. तलदर्शन नंदीधर द्वीप में बावन पर कूट (पर्वत) है। प्रत्येक कूट पर चतुर्थद्वारे चतुर्मुख चैत्य है। चारों दिशा में श्याम वर्ण के चार अंजनगिरि है। प्रत्येक अंजन गिरि की चारों दिशा में एक-एक है। ऐसे चार दिशा में चार दधिमुख पर्वत हैं। प्रत्येक विदिशा में दो दो रतिकर पर्वत है। For Private And Personal Use Only

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