Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org भारतीय शिल्पसंहिता इंद्र के चार प्रासाद वापिका सहित होते हैं। भैरव और इंद्र प्रासाद के बीच दिलकुमारी के कूटपर्वत पर उनको रहने की देरी होती है। पाठ कूट उपरांत ईशान कोण में एक बलकूट विशेष होता है। ईशान में इंद्रभवन, पीछे बलकूट, पीछे विकुकुमारी का कुट, पीछे उत्तरे चैव ऐसा कम होता है। मेरगिरी पर्वताकार टेकरा गुफाओं, जल, जलप्ररणा वृक्ष, प्राणी इत्यादि होते है। " " सु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समवसरण स्वरूप तीर्थंकर प्रभु को जहाँ केवल ज्ञान प्राप्त होता है वह स्थान पर देवताओं समवसरण की रचना करते है। रचना दो प्रकार की होती है। For Private And Personal Use Only समवसरण चतुरस्त्र और वृत्ताकार तीन वर्तुलाकार । प्राकार वप्र-गढ - कील्ला-बनाते हैं । प्रथम निम्न प्रकार में वाहन, हस्ति अध, पालकी, विमान रहते हैं। ऊपर के दूसरे प्राकार में परस्पर विरोधी जीव सहोदर जैसे रहते हैं। मूषक-विडाल सर्प मुकुल आदि । -

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