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भारतीय शिल्पसंहिता
एक मात्र रूप माना गया है। चार बालक रूप बेद्र धारण करते है। २. कुर्मावतार
नाभि से नीचे कूर्माकृति और ऊपर पुरुषाकृति है। दो हाथों में कमल और गदा होती है। सर पर किरीट मुकुट जैसे अलंकार धारण किये होते हैं। कई जगह उनके साथ लक्ष्मी, सरस्वती और गरुड़ भी होते हैं। कई-कई जगह समुद्र-मंथन का दृश्य उकेरा जाता है। मंदरमेरु पर्वत पर आवेष्ठित वासुकि नाम की डोरी से, एक ओर देव और दूसरी ओर दानव खड़े समुद्र मंथन करते हैं। शतपथ ब्राह्मण में वर्णन है कि प्रजापति-कच्छ ने जलप्रलय में नष्ट हो गई चीजे फिर से प्राप्त करवा दी थीं।
मत्स्य
कुर्मावतार
३. वराह अवतार
वराह अवतार, आदि वराह और नरवराह की भी मूर्तियां बनती हैं।
नृवराह
दो पैर वाली मनुष्याकृति पर वराह (सूअर) के मुख जैसा इसका स्वरूप है। पांच फणों वाले शेषनाग पर एक पैर रखा होता है। दो हाथ वाली मूर्ति का एक हाथ कमर पर रखा होता है। स्कंध पर भू देवी भी होती है। चार हाथ वाली मूर्ति में एक हाथ कमर पर रखा हुआ होता है। हाथ में गदा, शंख और चक्र धारण किये होते हैं। दांत में पृथ्वी को धारण किये होते हैं। प्रादिवराह
बराह प्राणी के अगले पैर के पास मुंह के नीचे कूर्म, और उसके ऊपर शेष का मानवरूप दो हाथ जोड़कर स्तुति की मुद्रा में होता है। उसके माथे पर सात फणा रहती है। शेष की बायीं ओर पृथ्वीदेवी की छोटी त्रिभंग मूर्ति कूर्म पर खड़ी रहकर एक हाथ से वराह के मुख का स्पर्श करती है। पैर के पास शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं। वराह की पीठ पर भिन्न-भिन्न पंक्तियों में अनेक देवस्वरूप उत्कीर्ण होते हैं। जैसे समुद्रमंथन, रामवनवास आदि । पैर के पास दिग्पाल और पुच्छ के नीचे कुंभ होता है। 'तैतेरिय संहिता' और 'शतपथ ब्राह्मण' में पानी में से पृथ्वी को बाहर निकालने का वर्णन है। उसे पृथ्वी के उद्धारक प्रजापति का रूप माना गया है।
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