Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 134
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णु १३. मोहिनी समुद्र मंथन से धन्वन्तरी की तरह ही मोहिनी भी प्रकट हुई थी। क्योंकि अमृतकुंभ लेकर जब दैत्य भागे थे, तब सभी देवों ने विष्णु की प्रार्थना की थी । तब विष्णु ने मोहिनी का सुंदर स्त्रीरूप धारण करके दैत्यों को मोहित किया था और देवों को अमृत दिलाया था । भागवत में उसका वर्णन करते हुए कहा गया है उसका वर्ण श्याम है, सुंदर यौवनयुक्त स्वरूप, रंगीनवस्त्र, और सर्वालंकार धारिणी मोहिनी 'विष्णुधर्मोत्तर के अनुसार हाथों में अमृतकुंभ के साथ प्रगट हुई थी। १०१ १४. श्रीकृष्ण विष्णु का यह अवतार बड़ा महत्वपूर्ण माना गया है। कृष्णावतार में उन्होंने अनेक प्रलौकिक लीलाएँ की थीं। वासुदेव ही कृष्ण हैं। उनके पिता वसुदेव है । मर्यादा पुरुषोत्तम राम माने जाते हैं। उसी तरह कृष्ण लीला पुरुषोत्तम माने जाते हैं। राम के समान ही कृष्ण पूजा की भी महत्ता है। भागवत, हरिवंश आदि पुराणों में श्रीकृष्ण के जीवन की लीला वर्णित है । बालकृष्ण, गौ-गोपाल, गोवर्धनधारी, वेणुगोपाल और कालियामर्दन यादि उनकी जीव-लोला के कई प्रसंग है श्रीकृष्ण को तो दशावतार में भी स्थान है। कई जगह बलराम को भी वहां स्थान दिया गया है। १५. व्यास उन्होंने वेदों की व्यवस्था की थी, और शिष्यों को वेदाध्ययन करवाया था। महाभारत, पुराण आदि उन्होंने ही लिखवाये थे। कई विद्वान मानते हैं कि पुराणों में व्यास का स्वरूप इस तरह वर्णित हैं: व्यास कृष्ण वर्ण हैं, जटा धारी और दुर्बल शरीरवाले हैं । व्यास के पास उनके चार शिष्य सुमतु, जैमिनी, यैल और वैशम्पायन बैठे हैं । विष्णु के दशावतार और पुराणों में वर्णित उनके प्रासंगिक रूप अवतार के वर्णन के बाद अब हम विष्णु के प्रादेशिक रूपों का अवलोकन करें । १. वरदराज द्रविड़ प्रदेश में इनकी विशेष पूजा होती है। मद्रास जोर और मैसूर में इनके बहुत मंदिर है। गजेन्द्र का मोक्ष करनेवाले विष्णु की कथा भागवत में है । द्रविड़ प्रदेश में वरदराज को बडी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। गजेन्द्र मोक्ष के शिल्पपट्ट (पेनत्स) गुजरात में बहुत मिलते हैं। विष्णुस्वरूप वरदराज के मंदिर उत्तर भारत में अभी तक नहीं पाये गये। वरदराज की मूर्ति के ऊपरी दो हाथो में चक्र और शंख हैं । नीचे का बायां हाथ वरदमुद्रा और दायाँ हाथ कटिहस्त मुद्रा में होता है। २. व्यंकटेश यह बालाजी के नाम से द्रविडमें पूजे जाते हैं। सुप्रसिद्ध तिरुपति व्यंकटेश्वर का मंदिर मद्रास के पास है। उसकी चार भुजानों के ऊपरी दो हाथो में शंख-चक्र और नीचे के हाथ अभय और कठयंबलित मुद्रा में कमर पर रखे हुए होते हैं। उनका वाहन गरुड़ और मारुती है, चिह्न पद्म है। हाथों में शिव का चिह्न भुजंग वलय होता है। इस स्वरूप की उत्तर भारत में कोई प्राचीन मूर्ति नहीं मिली । लेकिन अब चालीस वर्णों में उनकी धातुमूर्ति के मंदिर उत्तर भारत में हुए हैं। दक्षिण में श्रीरंगजी के नाम से रंगनाथ धाम पहचाना जाता है। वहां विष्णु की योगासन - ध्यानस्थ मूर्ति है। ३. विठ्ठल विठोबा | यह विष्णु का अपभ्रंश नाम है। महाराष्ट्र में इसे बहुत माना जाता है। पंढरपुर में इसका मुख्य मंदिर है। भक्त पुंडरिक की भक्ति के कारण भगवान को अवतार लेना पड़ा, ऐसी दंतकथा पंढरपुर के विठ्ठल महात्म्य में है। दो हाथ कमर पर रखे हुए चार हाथवाले यह देव हैं। ऊपरी दो हाथों में कमल और शंख हैं। अन्य आभूषणों में मुकुट, हार, माला, कुंडल प्रादि पहने होते हैं। उनके कक्ष में रुक्मिणी खड़ी मूर्ति कमल वरदमुद्रा में है। पंढरपुर में ऐसी श्याम वर्ण की मूर्ति बहुत पायी जाती हैं। बंबई के पास शहाड के विठठल मंदिर में भी सुंदर मूर्ति है। For Private And Personal Use Only १. बालकृष्ण बाल स्वरूप कृष्ण की घुटनों के बल चलती हुई बहुत सी धातुमूर्तियाँ पायी जाती हैं । उसे लालजी भी कहते हैं । बल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग में कृष्ण के ऐसे बालस्वरूप को ही मानते हैं। रामानंदी साधु भी इसी स्वरूप को मानते हैं । "वैरवानस श्रागम" में उसे 'नवनीत नट' का नाम दिया गया है।

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