Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org प्रसूनं शिवदेवं गणाध्यक्षं कमंडलुम् । अग्निकुंड पक्षद्वये पार्वती पर्वतो द्भवा ॥९॥ इति पार्वती ॥२॥ अनामये पद्मं तस्यास्तु कर्म दर्याश्च मूर्तिरित्युक्ता कर्तव्या शिवशालिनी ॥६॥ इति गौरी ॥ ३ ॥ प्रसूनं तथा वीणा दर्पणोऽथ कमंडलुः । ललिता च तदा नाम सिद्धचारणसेविता ॥७॥ इति ललिता ॥ ६॥ गोधासनाक्षसूत्रा च वरदाभयकमंडलुः ॥ श्रियामूर्तिस्तदा नाम गृहे पूज्या श्रिये सदा ॥८॥ इति श्रिया ५ अक्ष कमंडलु दये च पुराजली: । पंचाग्नयश्व कुंडेषु कृष्णा नाम सुशोभना ॥ ९॥ इति कृष्णा ६ हिमवती तीरता) गिरिता पद्यर्पणा । पद्मवणामलिङ्गचतुर्हस्ता महेश्वरी ॥१०॥ इति हिमती ७ मंडपांकुशा जानोपरि स्थिता। प्रतितोलवदरुणा रंभा च सर्वकामदा ॥११॥ इति रंभा ८ तवं पुस्तकं च धत्तं पद्म चतुर्वक्त्रा तु सावित्री श्रोत्रियाणां गृहे हिता ॥ १२ ॥ इति सावित्री ९ प्रक्षसूत्र वज्रशक्ति तस्याधश्च कमंडलुं । faisi पूजयेत्यं सर्वकामफलप्रदाम् ॥ १३ ॥ इति त्रिखंडा १० शूलाक्षसूनं दंडं (खेर) च श्वेते चामरके तथा । स्वेता देवी सीतला पापनाशिनी ॥१६॥ इति तोला ११ पाशांकुशाऽभयलिङ्ग चतुर्हस्तेष्वनुक्रमात् । त्रिपुरा नाम संपूज्या वंदिता विवरांरपि ॥१५॥ इति त्रिपुरा १ [इतिहास] गौरी स्वरूप (जयोक्त दे. भू.प्र.) द्वादश सरस्वती स्वरूप (वास्तुविद्या दीपार्णवमते ) श्रथातः संप्रवक्ष्यामि वाणी द्वदश लक्षणाः । चतुर्भुजायेकवस्त्रा मुकुटेन विराजितः ॥१॥ प्रभामंडलसंयुक्ताः कुंडलाचतशेखराः । वस्त्रालंकारसंयुक्तरूपा योवनान्विताः ॥ २ ॥ सुप्रसन्नाः सुतेजास्का नित्यं च भक्तवत्सलाः । दक्षिणाधचाक्षसूत्रे तदूवें पद्ममुत्तमम् ॥३॥ वीणा वामकरे ज्ञेया वामाद्यः पुस्तकं. तथा (इति प्रथम सरस्वती ) ॥ दक्षिणाम्रो सूत्रं तद्ध्वं पुस्तकं तथा ।।६॥ वीणा वामकरे ज्ञेया तदधः पद्मपुस्तकम् । द्वितीया सरस्वती नाम हंसवाहनसंस्थिता । इति द्वितीयसरस्वती २ बरचा दक्षिणे हस्ते चाक्षसूत्रं ततः। पद्मं वामकरे ज्ञेयं वामोर्ध्वं पुस्तकं भवेत् ॥६॥ इति कमलाऋऋक्मिणी ३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास्तुविद्या दीपाव और जयमन देवता भू. ५ में सरस्वती स्वरूप वर्णन दोनों का एक ही है। एक मुख, मुकुट कुंडलादि आभूषण, यौवनावस्था, प्रसन्नमुख, तेजप्रभामंडल और चार भुजायें कमल, माला, वीणा, पुस्तक और वरद लोभ विलोम हस्त में धारण किये यही दीपार्णव की बारवी नारदी देवी को अभय और जयमते दे. मू. प्र. ये दशवी महालक्ष्मी की भी अभय मुद्रा कही है। कई ग्रंथों में सरस्वती का वाह्न मयूर या हंस कहा है किंतु यहां दोनों ग्रंथों में वाहन का उल्लेख नहीं है। For Private And Personal Use Only भारतीय शिल्पसंहिता

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