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दिक्पाल
कमंडलधारी भी है। उसका प्रमुख आयुध गदा है।
सोम की पत्नी के चार हाथ होते हैं। उसका स्थान बायें उत्संग में होता है। वह पिंगाक्ष-वृक्षिदेवी मानी जाती है। लंका में उसकी वैष्णव के नाम से पूजा होती है। उसके पैर की दायीं ओर शंखनिधि और बायीं ओर पद्मविधि नामक भूत जैसे बलवान भयंकर रूप बनाये जाते हैं। नीचे की ओर विभव और रिद्धि देवी रत्नपात्र धारण किये हुए खड़े होते हैं। दूसरे हाथ से वह कुबेर को मालिंगन दिये होती है।
दक्षिणे-यम
उत्तरे-कुबेर (अन्य मते)
८. ईश :
ईशान कोण का अधिपति ईश शिव का स्वरूप है। उसका वर्ण श्वेत और वाहन वृषभ (नंदी) है। वह त्रिनेत्री है। उसके जटामुकुट में अर्धचंद्र है। उसकी चार भुजाओं में वरद, त्रिशूल, नागेन्द्र और बिजोर है। अन्य ग्रंथों में उसके ही हाथों में त्रिशूल और वरदमुद्रा मानी गई है। वह व्याघ्रचर्म, यज्ञोपवीत और जटामुकुट धारण करता है। ९. अनंत :
वह पाताल का प्रधोदिक्पाल है। उसका स्वरूप नाभि के ऊपर मनुष्य रूप और नाभि के नीचे सर्प रूप होता है। वह कमल पर बैठा हा उत्कीर्ण किया जाता है। उसका वाहन सर्प माना जाता है। उसका वर्ण सित या कृष्णवर्ण है। ऊपर के दो हाथों में त्रिशूल और नोचे बायें हाथ में उसने प्रक्षमूत्रमाला धारण की है। बलिराजा के वचनानुसार कई उनको विष्णु का रूप भी मानते हैं।
१० ब्रह्मा :
ऊवं लोकाधीश्वर दिक्पाल है। उसके चार भुजाएं हैं, और वर्ण सुवर्ण जैसा है। उसका वाहन हंस है और हायों में पुस्तक, माला, शंख तथा कमंडल है।
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