Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मह स्वरूप १५७ द्वादश आदित्य स्वरूप (चतुर्भूज दे.मू.प्र. जयमते) सूर्य स्वरूप चार भुजामों को कहा है। नववा पुषा और बारहवा विष्णु स्वरूप को फक्त दो भुजा कही है। बाकी दस सूर्य मूर्ति का चारभुजा में उपरके दो भुजा में कमल धारण कराया है। सूर्य मूर्ति का सप्ताश्वरथ वाहन अन्य ग्रंथों में कहा है । यहाँ वाहन का उल्लेख नहीं। १ सुधाता कमल माला कमंडल ७ भ्रम शूल सुदर्शन उपर के दो हाथ में कमल उपर के दो हाथ में कमल २ मित्रा सोमरस अमृत शूल ८ विवस्वान (विश्वभूमि) त्रिशूल माला दो हाथ में कमल दो हाथ में कमल ३ आर्यमणि चक्र गदा दो हाथ में कमल दो हाथ में कमल माला वज्र १० सविता गदा सुदर्शन दो हाथ में कमल दो हाथ में कमल ५ वरुण चक्र पाश ११ त्वष्टा सुवा-सखा होम का कल्लं दो हाथ में कमल दो हाथ में कमल कमंडल माला १२ विष्णु केवल दो हाथ में सुदर्शनकमल दो हाथ में कमल पूषा भय द्वादश आदित्य स्वरूपम् अपहावस सूर्यमूर्ति (जयमत ) देवतामूति प्रकरणम् शृण वत्स प्रवक्ष्यामि सूर्यभेदांश्च ते जय। यावत् प्रकाशकः सूर्यो तावन्मूतिमिरी डितः॥१॥ बक्षिणे पौष्करी माला करे वामे कमंडलुः। पद्माभ्यां शोभितकरा सुधाता प्रथमा स्मृता ॥२॥इति सुधाता १ शूलं वामकरे यस्या बक्षिणे सोम एव च। भित्रो नाम त्रिनयना कुशेशयविभूषिता॥३॥इति मित्रा २ प्रथमे तुकरे चकं तथा वामे च कौमुदी। मूर्तिरर्यमणो शेया पद्मालोज़हस्तिनी ॥४॥ इत्यर्यमा ३ अक्षमाला करे यस्य बळ वामे प्रतिष्ठितम् । रोही मूर्ति प्रकर्तव्या प्रधाना पद्मभूषिता॥५॥ इति रु ४ चकंतु दक्षिणे यस्या वामे पाशः सुशोभनः। सावारणी भवेन्मूतिः पचव्याकरदया॥६॥ इति वरुणा ५ कमंडल दक्षिणतोऽक्षमाला चैव वामतः । सा भवेत् सस्मिता सूर्यमूतिः पविभूषिता ॥७॥ इति सूर्य ६ यस्यास्तु दक्षिणे शूलं वामहस्ते सुदर्शनम्। भ्रममूर्तिः समाख्याता पचहस्ता शुभा जयेत् ॥८॥ इति श्रम ७ प्रथ वामकरे माला त्रिशूलं दक्षिणे करे। सा विश्वमूर्तिः सुखदा पद्मलांच्छनलक्षिता॥९॥ इति विश्वमूर्ति विवस्वान् पूषा खस्थरवेतितिमुजा पालांच्छना। सर्वपापहरा या सर्वलक्षणलक्षिता ॥१०॥ इति पूजा ९ बक्षिणे तु गदा यस्या वामहस्ते सुदर्शनम् । पग्रहस्तातु सावित्री मूर्तिः सर्वार्थसाधनी॥११॥ इति सावित्री १० सविता अवं च दक्षिणे हस्ते वामे होमजकीलकम् । मूर्तिस्वाष्ट्री भवेवस्याः पन्मे ऊर्ध्वकरद ये ॥१२॥ इति त्वष्टा ११ For Private And Personal Use Only

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