Book Title: Bharatiya Shilpsamhita
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Somaiya Publications

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Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ भारतीय शिल्पसंहिता योगिनियों के स्तीत्र और वीर के नाम जैन आगमसार ग्रंथ में दिये हैं। जैन संप्रदाय की श्रूत देवी का स्वरूप इस श्रूतदेवी की तरह वर्णित किया है : श्रूतदेवी : श्वेतवर्ण, प्रभामंडल और सर्व अलंकार युक्त इन यौवन रूपिणी के तीन नेत्र हैं । दायें हाथों में बरद और कमल हैं। बायें हाथों में पुस्तक और माला हैं। श्री मल्लिषेणाचार्य ने वाग्देवी के स्वरूप में वरद और कमल के स्थान पर अभय और ज्ञानमुद्रा कही है। ‘बप्पभट्ट सूरिवे वीणा, पुस्तक, मोती की माला और सफेद कमल धारण की बात कही है। पद्मावती: 'जयमाला पद्मावती दंडक' में इनका वर्णन इस प्रकार दिया है। कुकुट सर्प पर बैठी हुई पद्मावती के २४ हाथ हैं। इनके प्रायुध इस प्रकार हैं। १ वच ७ ढाल १३ मुशल १९ वरद २ अंकुश ८ खप्पर १४ हाल २० विशूल ३ कमल १५ शव का मस्तक २१ फरशी ४ चक्र १० धनुष १६ तलवार २२ नाग ११ कोरा-पराई १७ अग्नि ज्वाला २३ मुग्दर ६ डमरु १२ बाण सकोरा पराई १८ मुंडमाला अन्य मतों से इस प्रकार के भी आयुध हैं: १ नागपारा, २ बड़ा पाषाण, ३ कुकुट, ४ सर्प मादि। 'अदभुत पद्मावती कल्प' में चार भुजा युक्त पद्यावती का स्वरूप वणित किया गया हैं। 'भैरव पद्मावती कल्प' में चार हाथ के प्रायुध इस प्रकार वर्णित किये गये हैं : पाश, फल, वरद और अंकुश। कमल का प्रासन है। तीन नेत्र हैं। पद्मावती के पर्याय नाम इस प्रकार हैं : यक्ष मणिभद्र : श्याम वर्ण का यह यक्ष सात सूंडवाले ऐरावत हाथी पर बैठा है । वराह-जैसा मुख और दांत द्वारा जैन चैत्य धारण किया है। उसकी छ: भुजामों में बायीं दायीं भुजायें पाश और ढाल, त्रिशूल, माला, वाम भुजायें, पाश, अंकुश तलवार वाली होती है और शक्ति होती है। सिंदूर लगाये हुए काष्ट को मणिभद्र के रूप में उपाश्रय में बिराजमान करते हैं। घंटाकर्ण यक्ष : ये घंटाकर्ण महावीर सर्व भूत-प्राणीमात्र की रक्षा करते हैं। उपसर्ग भय के दुखों से ये रक्षण करते हैं । ये पाप और रोग का नाश करनेवाले हैं। इनकी १८ भुजामों में वज्र, तलवार, दंड, चक्र, मुशल, अंकुश, मुग्दर, बाण, तर्जनीमुद्रा, ढाल, शक्ति, मस्तक, नागपाश , धनुष, घंटा, कुठार और दो त्रिशूल हैं। 'अग्निपुराण' में भी घंटाकर्ण का उल्लेख है। वर्तमान समय में घंटाकर्ण की मूर्ति इस तरह की होती है। धनुष-बाण चढ़ाकर वे खड़े हैं। पीछे बाण का तरकस है। कमर पर तलवार है। पैर के पास वज्र और गदा पडे हुए होते हैं। वहाँ (पाटली पर) विश प्रादि यंत्र भी उत्कीर्ण किये होते हैं। यद्यपि ऐसा प्राचीन शास्त्रीय स्वरूप नहीं है लेकिन कई मूर्तियों में कान और हाथों में छोटी-छोटी घंटियां बंधी हुई रहती हैं। घंटाकर्ण बावन वीर में से एक वीर माने गये हैं। क्षेत्रपाल : श्यामवर्ण, बवरे केश, बड़े विकृत दांत, पीली आँखें, पैर में पादुका और इनका नग्न स्वरूप होता हैं। छ: भुजायें, दायें हाथ में मुग्दर, पाश, और डमरु होते हैं। बायें हाथों में श्वान, अंकुश और दंड होते हैं । जैनाचार्य पादलिप्तसूरि की 'निर्वाण कलिका' का पाठ है कि भगवान की दक्षिण और ईशान कोण में दक्षिण मुखे इनकी स्थापना करनी चाहिए। क्षेत्रपाल का दूसरा स्वरूप-नग्न घटभूषीत मूठबाला की यज्ञोपवित-चतुर्भुजा करवत, डमरु, त्रिशूल और खोपडी धारण किया है। अष्ट प्रतिहार : जैन प्रासाद के चारों दिशाओं के अनुसार अष्ट प्रतिहार को दो द्वारपाल-प्रतिहार कहे हैं । इनका वाहन हाथी है। पूर्व दिशा के द्वार में - बायीं ओर दायें हाथों में बायें हाथों में १. पूर्व दिशा के द्वारे इन्द्र फल-वच अंकुश-दंड इन्द्रजय दायीं ओर अंकुश-दंड फल-वज ३. दक्षिण , वन-वच फल-दंड विजय - दायें फल-दंड वज-बत्र ५. पश्चिम, धरणेन्द्र मस्तके वन-अभय सर्प-दंड पचक सर्पफणा - दायें सर्प-दंड वन-अभय ७. उत्तर " सुनाथ - बायें फल-बंशी बंशी-दंड सुरदुंदुभि बंशी-दंड फल-बंशी महेन्द्र बायें 6 For Private And Personal Use Only

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