________________ प्रतिमान माना है। उत्तराध्ययनसूत्र के पच्चीसवें अध्ययन एवं धम्मपद के ब्राह्मण वर्ग नामक अध्याय में सच्चा ब्राह्मण कौन है, इसका विस्तार से विवेचन उपलब्ध है। विस्तारभय से उसकी समग्र चर्चा में न जाकर केवल कुछ गाथाओं को प्रस्तुत कर ही विराम लेंगे। उसमें कहा गया है कि 'जिसे लोक में कुशल पुरुषों ने ब्राह्मण कहा है, जो अग्नि के समान सदा पूजनीय है और जो प्रियजनों के आने पर आसक्त नहीं होता और न उनके जाने पर शोक करता है, जो सदा आर्य-वचन में रमण करता है, उसे ब्राह्मण कहते हैं।' - 'कसौटी पर कसे हुए और अग्नि के द्वारा दग्धमल हुए, शुद्ध किए गए जातरूप सोने की तरह जो विशुद्ध है, जो राग, द्वेष और भय से मुक्त है तथा जो तपस्वी है, कृश . है, दान्त है, जिसका मांस और रक्त अपचित (कम) हो गया है, जो सुव्रत है, शांत है, उसे ही ब्राह्मण कहा जाता है।' 'जो त्रस और स्थावर जीवों को सम्यक् प्रकार से जानकर उनकी मन, वचन और काया से हिंसा नहीं करता है, जो क्रोध, हास्य, लोभ अथवा भय से झूठ नहीं बोलता, जो सचित्त या अचित्त, थोड़ा या अधिक अदत्त नहीं लेता है, जो देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बंधी मैथुन का मन, वचन और शरीर से सेवन नहीं करता है, जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल में लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो कामभोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' ___ इसी प्रकार जो रसादि में लोलुप नहीं है, जो निर्दोष भिक्षा से जीवन का निर्वाह करता है, जो गृह त्यागी है, जो अकिंचन है, पूर्वज्ञातिजनों एवं बंधु-बांधवों में आसक्त नहीं रहता है, उसे ही ब्राह्मण कहते हैं।' बौद्धग्रंथ धम्मपद में भी कहा गया है कि जैस कमल पत्र पर पानी होता है, जैसे आरे की नोंक पर सरसों का दाना होता है, वैसे ही जो काम-भोगों में लिप्त नहीं होता, जिसने अपने दुःखों के क्षय को यहीं पर देख लिया है, जिसने जन्म-मरण के भार को उतार दिया है, जो सर्वथा अनासक्त है, जो मेघावी है, स्थितप्रज्ञ है, जो सन्मार्ग तथा कुमार्ग को जानने में कुशल है और जो निर्वाण की उत्तम स्थिति को पहुंच चुका है-उसे ही मैं ब्राह्मण कहता हूं। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन एवं बौद्ध- दोनों परम्पराओं ने ही सदाचार के आधार पर ब्राह्मणत्व की श्रेष्ठता को स्वीकार करते हुए ब्राह्मण की एक नई परिभाषा प्रस्तुत की, जो सदाचार और सामाजिक समता की प्रतिष्ठाधक थी। न केवल जैन परम्परा एवं बौद्ध-परम्परा में, वरन् महाभारत में भी ब्राह्मणत्व की यही (62)