Book Title: Bharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 213
________________ हिन्दू धर्म और धार्मिक सहिष्णुता और सह-अस्तित्व . विश्व के विभिन्न धर्मों में हिन्दू धर्म और विश्व के विभिन्न देशों में भारत ही एक ऐसा देश है, जो धार्मिक सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के अविरण उदाहरण प्रस्तुत करता है। विश्व के विभिन्न देशों को देखें तो भारत ही एक ऐसा देश है, जहां विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के अनुयायी साथ-साथ रहते हैं। धार्मिक सहिष्णुता और सह-अस्तित्व का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है? यदि हम इस देश का इतिहास देखे तो विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग यहां आए और इस देश की माटी के होकर रह गए। सर्वप्रथम भारत में शक हूण आए और यहां के परिवेश में ऐसे घुल मिल गए, आज उन्हें अलग से पहचान पाना भी कठिन या असम्भवसा है। सिकंदर से साथ ग्रीस और यूनान के लोग भी भारत आए थे और इसी माटी में समाहित हो गए। केरल में ईसाई आए चाहे उन्होंने अपने धर्म और अपनपी संस्कृति को बचाने का प्रयास अवश्य किया हो, किंतु वे इस देश की सभ्यता और संस्कृति से अप्रभावित भी नहीं रहे। यही स्थिति ईरान से आए पारसियों की रही। इस देश की माटी ने न केवल उन्हें स्वीकार किया, अपितु उन्हें अपने धर्म और संस्कृति को सुरक्षित रखने में पूरा सहयोग दिया। यही स्थिति इस्लाम की भी रही- भारत ने उनके धर्म और संस्कृति को बचाए रखने में उन्हें पूरा सहयोग दिया। इस्लाम भी एक ओर बृहद् हिन्दू धर्म से प्रभावित हुआ, तो दसरी ओर उसने उसे प्रभावित भी किया। इस्लाम में मजारपूजा और मोहर्रम जैसे पर्व बृहद् हिन्दूधर्म के प्रभाव से अस्तित्व में आए, तो दूसरी ओर हिन्दूधर्म में निर्गुण उपासना की जो धारा विकसित हुई, वह भी हिन्दूधर्म पर इस्लाम के प्रभाव का कारण है। भारत में सिक्ख धर्म की उत्पत्ति और विकास आज भी हिन्दूधर्म और इस्लाम के समन्वय की कहानी कहता है। इस देश में सूफी संतों के साथ-साथ कबीर, दादू, नानक ने सहिष्णुता और सह-अस्तित्व की जो गंगा बहाई थी, उसकी धारा आज भी जीवित है। भारतीय संस्कृति और भारतीय चिंतन प्रारम्भ से ही उदारवादी और समन्वयवादी रहा है। भारतीय चिंतन की इसी उदारता एवं समन्वयवादिता के परिणामस्वरूप हिन्दूधर्म विभिन्न साधना और उपासना की पद्धतियों का कुछ ऐसा संग्रहालय बन गया कि आज कोई भी विद्वान हिन्दूधर्म की सुनिश्चित परिभाषा देने में असफल हो जाता है। पूजा-उपासना एवं कर्मकाण्ड की आदिम प्रवृत्तियों से लेकर अद्वैत वेदांत का श्रेष्ठतम दार्शनिक सिद्धांत (209)

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