Book Title: Bharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 198
________________ पार्श्वनाथ और महावीर को छोड़कर लगभग सभी जैनेतर परम्पराओं के हैं। नारद, भारद्वाज, नमि, रामपुत्र, शाक्यपुत्र गौतम, मंखलि गोशाल आदि अनेक धर्ममार्ग के प्रवर्तकों एवं आचार्यों के विचारों का इसमें जिस आदर के साथ संकलन किया गया है, वह धार्मिक उदारता और सहिष्णुता का परिचायक है। इन सभी को अर्हत् ऋषि कहा गया है और इनके वचनों को आगमवाणी के रूप में स्वीकार किया गया है। सम्भवतः प्राचीन धार्मिक साहित्य में यही एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जहां विरोधी विचारधारा और विश्वासों के व्यक्तियों के वचनों को आगमवाणी के रूप में स्वीकार कर समादर के साथ प्रस्तुत किया गया हो। जैन परम्परा की धार्मिक उदारता की परिचायक सूत्रकृतांगसूत्र की पूर्वनिर्दिष्ट वह गाथा भी है, जिसमें यह कहा गया है कि जो अपने-अपने मत की प्रशंसा करते हैं और दूसरों के मतों की निंदा करते हैं तथा उनके प्रति विद्वेषभाव रखते हैं, वे संसारचक्र में परिभ्रमित होते रहते हैं। सम्भवतः धार्मिक उदारता के लिए इससे महत्वपूर्ण और कोई वचन नहीं हो सकता। यद्यपि यह सत्य है कि अनेक प्रसंगों में जैन आचार्यों ने भी दूसरी विचारधाराओं और मान्यताओं की समालोचना की है, किंतु उन संदर्भो में भी कुछ अपवादों को छोड़कर सामान्यतया हमें एक उदार दृष्टिकोण का परिचय मिलता है। हम सूत्रकृतांग का ही उदाहरण लें, उसमें अनेक विरोधी विचारधाराओं की समीक्षा की गई है। किंतु शालीनता यह है कि कहीं भी किसी धर्ममार्ग या धर्मप्रवर्तक पर वैयक्तिक छींटाकशी नहीं है। ग्रंथकार केवल उनकी विचारधाराओं का उल्लेख करता है, उनके मानने वालों का नामोल्लेख नहीं करता है। वह केवल इतना कहता है कि कुछ लोगों की यह मान्यता है या कुछ लोग यह मानते हैं, जो कि संगतिपूर्ण है। इस प्रकार वैयक्तिक या नामपूर्वक समालोचना से, जो कि विवाद या संघर्ष का कारण हो सकती है, वह सदैव दूर रहता है।28 जैनागम साहित्य में हम ऐसे अनेक संदर्भ भी पाते हैं, जहां अपने से विरोधी विचारों और विश्वासों के लोगों के प्रति समादर दिखाया गया है। सर्वप्रथम आचारांगसूत्र में जैन मुनि को यह स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि वह अपनी भिक्षावृत्ति के लिए इस प्रकार जाए कि अन्य परम्पराओं के श्रमणों, परिव्राजकों और भिक्षुओं को भिक्षा प्राप्त करने में कोई बाधा न हो। यदि वह देखे कि अन्य परम्परा के श्रमण या भिक्षु किसी गृहस्थ उपासक के द्वार पर उपस्थित है तो वह या तो भिक्षा के लिए आगे प्रस्थान कर जाए या फिर सबके पीछे इस प्रकार खड़ा रहे कि उन्हें भिक्षाप्राप्ति में कोई बाधा न हो। मात्र यही नहीं यदि गृहस्थ उपासक उसे और अन्य परम्पराओं के भिक्षुओं के (194)

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