Book Title: Bharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 180
________________ भी न हिन्दू है न बौद्ध, न जैन है न पारसी, न मुस्लिम है न ईसाई। विकारों से विमुक्त रहना ही शुद्ध धर्म है। क्या शीलवान, समाधिवान और प्रज्ञावान होना केवल बौद्धों का ही धर्म है? क्या वीतराग, वीतद्वेष और वीतमोह होना जैनों का ही धर्म है? क्या स्थितप्रज्ञ, अनासक्त, जीवन-मुक्त होना हिन्दुओं का ही धर्म है? धर्म की इस शुद्धता को समझें और धारण करें। (धर्म के क्षेत्र में) निस्सार छिलकों का अवमूल्यन हो, उन्मूलन हो, शुद्धसार का मूल्यांकन हो, प्रतिष्ठापन हो।'' जब यह स्थिति आएगी, धार्मिक सहिष्णुता सहज ही प्रकट होगी। साधनागत विविधता : असहिष्णुता का आधार नहीं . .. तृष्णा, राग-द्वेष और अहंकार अधर्म के बीज हैं। इनसे मानसिक और सामाजिक समभाव भंग होता है। अतः इनके निराकरण को सभी धार्मिक साधनापद्धतियां अपना लक्ष्य बनाती हैं। किंतु मनुष्य का अहंकार, मनुष्य का. ममत्व कैसे समाप्त हो, उसकी तृष्णा या आसक्ति का उच्छेद कैसे हो? इस साधनात्मक पक्ष को लेकर ही विचारभेद प्रारम्भ होता है। कोई परम सत्ता या ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण में ही आसक्ति, ममत्व और अहंकार के विसर्जन का उपाय देखता है, तो कोई उसके लिए जगत् की दुःखमयता, पदार्थों की क्षणिकता और अनात्मता का उपदेश देता है, तो कोई उस आसक्ति या रागभाव की विमुक्ति के लिए आत्म और अनात्म अर्थात् स्व-पर. के विवेक को धार्मिक साधना का प्रमुख अंग मानता है। वस्तुतः यह साधनात्मक भेद ही धर्मों की अनेकता का कारण है। किंतु यह अनेकता धार्मिक असहिष्णुता या विरोध का कारण नहीं बन सकती। आचार्य हरिभद्र ने योगदृष्टिसमुच्चय में धार्मिक साधना की विविधताओं का सुंदर विश्लेषण प्रस्तुत किया है। वे लिखते हैं यद्वा तत्तन्नयापेक्षा तत्कालादिनियोगतः / ऋषिभ्यो देशना चित्रा तन्मूलैषापि तत्वतः // . अर्थात् प्रत्येक ऋषि अपने देश, काल और परिस्थिति के आधार पर भिन्नभिन्न धर्ममार्गों का प्रतिपादन करते हैं। देश और कालगत विविधताएं तथा साधकों की रुचि और स्वभावगत विविधताएं धार्मिक साधनाओं की विविधताओं के आधार हैं। किंतु इस विविधता को धार्मिक असहिष्णुता का कारण नहीं बनने देना चाहिए। जिस प्रकार एक ही नगर को जाने वाले विविध मार्ग परस्पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में स्थित होकर भी विरोधी नहीं कहे जाते हैं, एक ही केंद्र को योजित होने वाली परिधि से खींची गई विविध रेखाएं चाहें बाह्य रूप से विरोधी दिखाई दें, किंतु यथार्थतः उनमें कोई विरोध (176)

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