Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 9
________________ १५. बौद्ध व्यष्टिवाद को आंशिक समष्टिवादी परिणति को सम्भावनाएँ ९८-१०२ डॉ. हर्षनारायण १६. सामाजिक संघटन को उत्पत्ति और बौद्ध दृष्टिकोण १०३-१०८ डॉ० प्रतापचन्द्र १७. बुद्ध का स्वनियन्त्रित अध्यात्मवाद : समष्टि-व्यष्टि के सन्दर्भ में १०९-११४ श्री राधेश्यामधर द्विवेदी १८, बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में व्यष्टि एवं समष्टि ११५-११९ डॉ० केवलकृष्ण मित्तल १९. व्यक्ति और समाज के प्रति महायान के दृष्टि कोण १२० १२२ आचार्य टी० छोगहुन् २०. महायानी साधक को दृष्टि से व्यक्ति, समाज तथा उनके सम्बन्ध १२३ १२७ श्री टशी पलजोर २१. बौद्ध दृष्टि में व्यष्टि और समष्टि १२८-१३१ गेशे येशेस थबख्यस् २२. बौद्धदृष्टि से व्यक्ति का विकास १३२-१३८ डॉ० हरिशंकर शुक्ल २३. व्यक्ति, समाज और उनके सम्बन्धों को अवधारणा १३९-१४५ डॉ. ब्रह्मदेवनारायण शर्मा २४. समष्टि एवं व्यष्टि के सन्दर्भ में ब्रह्मविहार, बोधिचित्त ओर ज्वलिता चण्डाली १४६-१५३ डॉ० सुनोतिकुमार पाठक २५ बौद्ध दर्शन तथा रसेल के चिन्तन में व्यष्टि एवं समष्टि का स्वरूप १५४ -१५६ डॉ० नारायणशास्त्री द्राविड २६. समकालीन भारत में व्यष्टि और समष्टि के सम्बन्धों को दिशा १५७-१६१ प्रो० कैलाशनाथ शर्मा २७. परम्परागत व्यवस्था में व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध १६२-१६६ डॉ. वैद्यनाथ सरस्वती २८ भारतीय बौद्ध कला में व्यक्ति एवं समाज से सम्बन्धित दृष्टिकोण १६७-१६९ डॉ. दीनबन्धु पाण्डेय २९. व्यक्ति और समाज के व्यक्तिवादी, समष्टिवादी और समन्वयवादी स्वरूप का विवेचन १७०-१७४ प्रो० मुकुटविहारी लाल ३०. ध्यक्ति और समाज : बौद्ध दृष्टि का एक वैज्ञानिक विश्लेषण १७५-१८४ श्री वी० के० राय ३१. व्यक्ति-समष्टिविकासानुबद्धा बौद्धदृष्टिः १८७-१९१ प्रो० शान्तिभिक्षुशास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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