Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-विलास शाहजहाँकी छत्रछायामें रहकर दिल्लीके विलासमय वातावरणमें रहते थे तब लवंगी नामकी किसी दिव्यरूपवती यवनकन्यासे इनका संसर्ग हो गया। इन्होंने उससे विवाह कर लिया । यौवनके उन्मादपूर्ण दिनोंको उसके साथ आनन्दपूर्वक बिताकर वृद्धावस्थामें ये उसे लेकर काशी चले आये। यहाँ भट्टोजि और अप्पय दीक्षित आदि विद्वानोंने इन्हें म्लेच्छ कहकर जातिसे बहिष्कृत कर दिया । तब खिन्न होकर ये उसे साथ लेकर गंगाजोकी सीढ़ियोंपर बैठकर अपनी बनाई हुई गंगालहरीका पाठ करने लगे। इनके एक-एक श्लोकपर गंगाजी एक-एक सीढ़ी चढ़ती गई और ५२ वें श्लोकमें इनके पास पहुँचकर उन्होंने इन्हें अपनी गोदमें समा लिया। तीसरी किंवदन्ती यह भी है कि लवङ्गी नामकी जिस युवती पर ये आसक्त थे, वह मर गई। उसके विरहमें व्याकुल होकर इन्होंने दिल्ली छोड़ दी और काशी चले आये । यहाँ पंडितोंने इनका तिरस्कार किया और अत्यन्त खिन्न होकर गंगाजीकी बाढ़में इन्होंने आत्मोत्सर्ग कर दिया। चौथी किंवदन्ती यह भी है कि वृद्धावस्थामें जब ये यवनीको लेकर काशी आये तब एक दिन उसीके साथ गंगातटपर मुह ढाँपे सोये हुये थे और इनकी शिखा नीचे लटकी हुई थी। प्रातःकाल अप्पय दीक्षित स्नान करने आये। एक वृद्धको इस प्रकार सोया देख उन्होंने कहा-किं निःशक़ शेषे शेषे वयसि त्वमागते मृत्यौ-अर्थात् थोड़ा जीवन शेष है, मृत्यु समीप आ गई है, तुम निःशङ्क होकर क्या सोये हो ? उनके इन शब्दोंको सुनकर पंडितराजने मुंह खोला। पंडितराजको पहिचानते ही अप्पयने उस पद्यका उत्तरार्ध कह किया-"अथवा सुखं शयीथाः निकटे जाति जाह्नवी भवतः" अथवा सोओ आरामसे, पासमें ही तुम्हारे भगवती गंगा जाग रही है अर्थात् यों ही मुक्त हो जाओगे। इसी प्रकार कुछ और भी कथाएँ इनके विषयमें प्रचलित हैं, किन्तु हमारे विचारसे ये केवल दन्तकथाएँ ही हैं, इनमें सत्यांशका लेश नहीं For Private and Personal Use Only

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