Book Title: Bhairav Padmavati Kalp
Author(s): Mallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ [१०] अजितसेनगणि कनकसेनगणि जिनसेन मलिषेण किन्तु इस गुरु-परस्परामें उन्होंने अपने समयका कोई उल्लेख नहीं किया है। किन्तु उनके अन्य ग्रन्धोंको देखनेसे यह पता चलता है कि यह विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दीके अन्त अथवा वारहीं शताब्दीके आरम्भमें अवश्य विद्यमान थे। क्योकि उन्होंने अपने ग्रन्थ महापुराणको मुलगुण्ड नगरमें शक संवव ९६९, एवं विक्रम संवत् ११९४ में ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमीके दिन समाप्त किया था। मुदगुण्ड नगर धारवाड़ जिलेकी गदक तहसील में बहांसे दक्षिण पश्चिमकी मोर बारह मीलपर है। महापुराणझी रचना मल्लिषेण मुनिने मुलगुण्ड नगर के एक जैन मन्दिरमें की थी। उन दिनों उक्त मन्दिरकी ख्याति एक तोर्थके रूपमें थी। मुलगुण्ड वार में आज भी उक्त मन्दिर के अतिरिक्त चार अन्य जैन मन्दिर भी हैं। इन मन्दिरों में शक सब ८२४ से लेकर १२९७ तबके शिलालेख पाए जाते हैं। इनमें से एक लेखमें आसार्य नामक व्यक्ति द्वारा सेनराशके कनकसेन मुनिको एक खेतके दान देनेका वर्णन भी किया गया है। मन्त्र शास्त्रोंका आधार इस मन्त्र शास्त्रोंको रचना बीजकोष तथा मन्त्र व्याकरणके आधारपर की जाती है। यद्यपि उपरोक्त विद्यानुशासनमें बीजकोष तथा मन्त्र व्यापरणके कुछ नियोका वर्णन किया गया है, किंतु

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 160