Book Title: Bhairav Padmavati Kalp Author(s): Mallishenacharya, Chandrashekhar Shastri Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ [९] पूर्ण अधिकार था। साथ ही वह एक उच्च कोटि के कवि भी. थे। उनके गारुड़मन्त्रबादबेदी होनेका प्रमाण तो प्रस्तुत ग्रन्धका दसवां एवं अन्तिम परिच्छेद-होले रहा है। मल्लिषेणके ग्रन्थ यद्यपि भैरव पद्मारती कल्पको देखते हमको उनकी गुरुपरम्पराके अतिरिक्त उनके सम्बन्धमें अन्य किसी बात का पता नहीं लगता। किन्तु ग्रन्थान्तरों को देखनेसे इस बातका पता चलता है कि उनके बनाए हुए कमसे कम निम्नलिखित प्रस्थ अवश्य थे १-महापुराण, २-नागकुमार चरित्र, ३-भैरव पद्मावती वल्प, ४-खरस्वती मन्त्र इल्प तथा ५-बालिनी कल्प । ऊर जिन्स ज्वालामालिनी पल्पका वर्णन झ्यिा गया है वह उस ज्वालिनी पल्पखे मिश है। और उसके लेखक भी मल्लिषेण मुनिसे मि एक इन्द्रनन्दि आचार्य थे। यह इन्द्रनन्दि आचार्य बालवनन्दिके प्रशिष्य एवं दयानन्दिछे शिष्य थे। उन्होंने हेलाचार्यके द्वारा प्रोत्साहन पाकर शक सम्बत् ८६१ तदनुसार विक्रम सम्बत् ९९६ में ज्दालामालिनी वल्रकी रचना की थी, ज्वालामालिनीदेवी के सम्बन्धमें हेलाचार्यने भी मालिनीमत नामसे एक ग्रन्थ बनाया था। मल्लिषेणका समय मल्लिषेण भाचार्यने भैरव पद्मावती कल्पमें अपनी गुरुपरम्परा यह दी हैPage Navigation
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