Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 444
________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ वैक्रिय पारीर प्रयोग बंध १५०७ कठिन शब्दार्थ-वासपुहत्त-वर्षपृथक्त्व (दो वर्ष से नो वर्ष तक) मन्भहिया-अधिक । भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन ! कोई जीव, वायुकायिक अवस्था में हो, वहाँ से मरकर वह वायकायिक के सिगय दूसरे काय में उत्पन्न हो जाय और फिर वह वहां से मरकर वायुकायिक जीवों में उत्पन्न हो, तो उस वायुकायिक एकेंद्रिय वैक्रिय-शरीर प्रयोग-बंध का अन्तर कितने काल का होता है ? ५४ उत्तर-हे गौतम ! उमके सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल-वनस्पतिःकाल तक होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना चाहिये। ५५ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकपने उत्पन्न होकर, वहां से काल करके रत्नप्रभा पृथ्वी के सिवाय दूसरे स्थानों में उत्पन्न हो और वहां से मरकर पुनः रत्नप्रभा पृथ्वी में नरयिकरूप से उत्पन्न हो, तो उस रत्नप्रभा नैरयिक वैक्रिय-शरीर प्रयोग-बंध का अन्तर कितने काल का होता है ? __ ५५ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बन्ध का अन्तर जघन्य अन्तर्महर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल होता है। देश-बंध का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल-वनस्पतिकाल का होता है। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम नरक-पृथ्वी तक जानना चाहिये, परन्तु विशेषता यह है कि सर्व-बंध का जघन्य अन्तर जिन नरयिकों की जितनी जघन्य स्थिति हो, उतनी स्थिति से अन्तर्मुहूर्त अधिक जानना चाहिये । शेष सारा कथन पूर्व के समान जानना चाहिये । पंचेंद्रिय तिर्यञ्च योनिक और मनुष्य के सर्व-बन्ध का अन्तर वायकायिक के समान जानना चाहिये । इसी प्रकार असुरकुमार, नागकुमार यावत् सहस्रार देवों तक, रत्नप्रभा के समान जानना चाहिये, परंतु विशेषता यह है कि उनके सर्व-बंध का अन्तर, जिनकी जितनी जघन्य स्थिति हो, उससे अंतर्मुहूर्त अधिक जानना चाहिये। शेष सारा कथन पूर्व के समान जानना चाहिये। ५६ प्रश्न-हे भगवन् ! आणत देवलोक में देवपने उत्पन्न हुआ कोई जीव, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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