Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 473
________________ भगवती सूत्र---ग. ८ उ. ५. बंधको का अल्पवहत्व ११० उत्तर-हे गौतम ! (१) सबसे थोडे जीव, आहारक-शरीर के सर्व बन्धक हैं। (२) उनसे आहारक-शरीर के देश बन्धक संख्यात गुण है। (३) उनसे वैक्रिय शरीर के सर्व बन्धक असंख्यात गुण हैं। (४) उनसे वैक्रियशरीर के देशबन्धक असंख्यात गुण है। (५) उनसे तेजस् और कार्मण-शरीर के अबन्धक जीव अनन्त गुण हैं और ये दोनों तुल्य हैं । (६) उनसे औदारिकशरीर के सर्व-बंधक जीव अनन्त गुण है। (७) उनसे औदारिक-शरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं। (८) उनसे औदारिक-शरीर के देशबंधक जीव असंख्यात गुण हैं । (९) उनसे तेजस और कार्मण-शरीर के देश-बंधक जीव विशेषाधिक हैं। (१०) उनसे वैक्रिय शरीर के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। (११) उनसे आहारक शरीर के अबन्धक जीव विशेषाधिक है। ... हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-आहारक-शरीर के सर्व-बंधक मवमे थोड़े हैं। इसका कारण यह है कि आहारक-गरीर चौदह पूर्वधारी के ही होता है और वे भी कोई प्रयोजन उपस्थित होने पर ही आहारक-शरीर धारण करते हैं। उसमें भी सर्व-बंध का काल मात्र एक ममय है, इसलिए वे सबसे थोड़े हैं। उनसे आहारक-शरीर के देश-बधक संख्यात गुण हैं, क्योंकि उसके देशबंध का काल बहुत है। उनसे वैक्रिय-गरीर के सर्व-बंधक असंख्यात गुण हैं. क्योंकि आहारक शरीरधारी जीवों से वैक्रिय-शरीरधारी असंख्यात गुण हैं। उनसे वैक्रिय-शरीर के देश-बंधक असंख्यात गुण हैं, क्योंकि सर्व-बंध के काल को अपना देश-बंध का काल असंख्यात गुण है । अथवा प्रतिपद्यमान सर्व-बंधक होते हैं और पूर्वप्रतिपन्न देश-बंधक होते है। प्रतिपद्यमान की अपेक्षा पूर्वप्रतिपन्न असंख्यात गुण है । अतः वैक्रिय-शरीर के सर्व-बंधकों से देश-बंधक असंख्यात गुण है। उनसे तेजम् और कार्मण के अवंधक अनन्त गुण है, क्योंकि तेजस् और कार्मण के अबंधक सिद्ध भगवान हैं, वे वनस्पितिकायिक जीवों को छोड़कर शेष सभी ससारी जीवों से अनन्तगुण हैं । उनसे औदारिक-शरीर के सर्व-बंधक जीव अनन्त गुण है । क्योंकि इनमें वनस्पतिकायिक जीव भी सम्मिलित हैं। उनमे औदा. रिक-शरीर के अबंधक विशेषाधिक हैं। क्योंकि ये विग्रह-गति में रहे. हुए जीव और सिद्ध आदि जीव हैं । यहाँ सिद्धादि जीव अति अल्प होने से विवक्षा नहीं की गई। विग्रह-गति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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