Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 496
________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध ३५ प्रश्न-जस्स णं भंते ! दरिसणावरणिजं तस्स वेयणिजं, जस्स वेयणिजं तस्स दरिसणावरणिज्जं ? ३५ उत्तर-जहा णाणावरणिज्ज उवरिमेहिं सत्तहिं कम्मेहिं समं भणियं तहा दरिसणावरणिज्जं पि उवरिमेहिं छहिं कम्मेहिं समं भाणियव्वं; जाव अंतराइएणं । कठिन शब्दार्थ--उवरिमेहि- ऊपर के । भावार्थ-३५ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस जीव के दर्शनावरणीय कर्म है, उसके वेदनीय कर्म है और जिसके वेदनीय कर्म है, उसके दर्शनावरणीय कर्म है ? __ ३५ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म का कथन-ऊपर के सात कर्मों के साथ कहा, उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म का भी ऊपर के छह कर्मों के साथ कहना चाहिये । इस प्रकार यावत् अन्तराय कर्म तक कहना चाहिये। ३६ प्रश्न-जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स मोहणिजं; जस्स मोहणिज्ज तस्स वेयणिज्जं? ____३६ उत्तर-गोयमा ! जस्स वेयणिज्ज तस्स मोहणिज्ज सिय अस्थि, सिय नत्थि जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्जं णियमं अत्थि । . भावार्थ-३६ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस जीव के वेदनीय कर्म है, उसके मोहनीय कर्म है और जिस के मोहनीय कर्म है, उस जीव के वेदनीय कर्म भी है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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