Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 497
________________ १५६० भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० कर्मों का पारपरिक सम्बन्ध उत्तर-हे गौतम ! जिस जीव के वेदनीय कर्म है, उसके मोहनीय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता, परन्तु जिसके मोहनीय कर्म हैं, उसके वेदनीय कर्म नियम से होता है। ३७ प्रश्न-जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स आउयं ० ? ३७ उत्तर-एवं एयाणि परोप्परं णियमं, जहा आउएण. समं एवं णामेण वि गोएण वि समं भाणियव्वं । भावार्थ-३७ प्रश्न---हे भगवन् ! जिसके वेदनीय कर्म है, उसके आयुष्य कर्म हैं, इत्यादि प्रश्न ? ३७ उत्तर-हे गौतम ! ये दोनों कर्म परस्पर अवश्य होते हैं। जिस प्रकार आयुष्य कर्म के साथ कहा, उसी प्रकार नाम और गोत्र कर्म के साथ भी कहना चाहिये। .३८ प्रश्न-जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं-पुच्छ । ३८ उत्तर-गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेयणिज्जं णियमं अस्थि । भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके वेदनीय कर्म है, उसके अन्तराय कर्म है, इत्यादि प्रश्न ? ३८ उत्तर-हे गौतम ! जिसके वेदनीय कर्म है, उसके अन्तराय कर्म कदाचित् होता है, और कदाचित् नहीं भी होता । परन्तु जिसके अन्तराय कर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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