Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 495
________________ १५५८ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १. को मारारिक सम्बन्ध ३३ उत्तर-गोयमा ! जस्स णाणावरणिज तस्स मोहणिजं सिय अस्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण मोहणिजं तस्स णाणावरणिजं णियम अस्थि । भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके मोहनीय कर्म है ? और जिसके मोहनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म है ? .. ३३ उत्तर-हे गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके मोहनीय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता। परन्तु जिसके मोहनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म नियम से है। ३४ प्रश्न-जस्स णं भंते ! णाणावरणिजं तस्स आउयं ? . ३४ उत्तर-एवं जहा वेयणिज्जेण समं भणियं तहा आउएण वि समं भाणियव्वं, एवं णामेण वि, एवं गोएण वि समं; अंतराइएण ममं जहा दरिसणावरणिज्जेण समं तहेव णियमा परोप्परं भाणियवाणि। कठिन शब्दार्थ-सम-साथ, परोप्परं-परस्पर । भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके आयुष्य कर्म है, इत्यादि प्रश्न ? ३४ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार वेदनीय कर्म के विषय में कहा, उसी प्रकार आयुष्य कर्म के लिए भी कहना चाहिये । इसी प्रकार नाम और गोत्र कर्म के साथ भी कहना चाहिये। जिस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के सम्बन्ध में कहा, उसी प्रकार अन्तराय कर्म के साथ भी परस्पर नियमा कहना चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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