Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 500
________________ भगदती सूत्र - श. ८ उ. १० कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध सिय णत्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्स णामं णियमा अस्थि । भावार्थ - ४३ प्रश्न - हे भगवन् ! जिसके नामकर्म होता है, उसके अन्तराय कर्म होता है ? और जिसके अन्तराय कर्म होता है, उसके नामकर्म होता है ? १५६३ ४३ उत्तर- हे गौतम! जिसके नामकर्म होता है, उसके अन्तराय-कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता । परन्तु जिसके अन्तराय-कर्म होता है, उसके नामकर्म अवश्य होता है । ४४ प्रश्न - जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं पुच्छ । - ४४ उत्तर - गोयमा ! जस्स णं गोयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि; सिय नत्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्म गोयं नियमं अस्थि । भावार्थ - ४४ प्रश्न - हे भगवन् ! जिसके गौत्र-कर्म होता है, उसके अन्तराय-कर्म होता है और जिसके अन्तराय कर्म होता है, उसके गोत्र कर्म होता है ? Jain Education International ४४ उत्तर - हे गौतम! जिसके गोत्र-कर्म होता है, उसके अन्तराय-कर्म कदाचित होता है और कदाचित् नहीं भी होता । परन्तु जिसके अन्तराय कर्म होता है, उसके गोत्र-कर्म नियम से होता है । विवेचन- ' भजना' का अर्थ है 'विकल्प' अर्थात् कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता । 'नियमा' का अर्थ है 'नियमतः ' ( अवश्य ) । चोवीस दण्डकों की अपेक्षा आठ कर्मों की नियमा और भजना बतलाई जाती है । मनुष्य में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चार घाती कर्मों की भजना है। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र- इन चार अघाती कर्मों की नियमा है । २३ दण्डकों में आठ कर्मों की नियमा है । सिद्ध भगवान् में कर्म नहीं होते । आठकर्मों की नियमा और भजना के २८ भंग होते हैं । यथा-ज्ञानावरणीय से ७, दर्शनावरणीय से ६, वेदनीय से ५, मोहनीय से ४, आयुष्य से ३ नाम से २, गोत्र-कर्म से १ । For Personal & Private Use Only • www.jainelibrary.org

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