Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 494
________________ -श.८3.१० कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध १५५७ णिजं णियमं अथि। कठिन शब्दार्थ-अत्थि-होता है, या है। भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस जीव के ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके दर्शनावरणीय कर्म भी है और जिस के दर्शनावरणीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म भी है ? ३१ उत्तर-हाँ गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके नियम से दर्शनावरणीय कर्म भी है और जिसके दर्शनावरणीय कर्म है, उसके नियम से ज्ञानावरणीय कर्म भी है। ३२ प्रश्न-जस्म णं भंते ! णाणावरणिजं तस्स वेयणिजं, जस्स वेयणिजं तस्स णाणावरणिजं ? ३२ उत्तर-गोयमा ! जस्स णाणावरणिजं तस्स वेयणिजं णियमं अस्थि, जस्स पुण वेयणिजं तस्स णाणावरणिजं सिय अस्थि, सिय नत्थि । .कठिन शम्दार्थ-नस्थि-नहीं होता, या नहीं है। भावार्थ-३२ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके वेदनीय कर्म है, और जिसके वेदनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म है ? ... ३२ उत्तर-हे गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके नियम से वेदनीय कर्म भी है, किंतु जिसके वेदनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म कदाचित होता भी है और कदाचित नहीं भी होता। ३३ प्रश्न-जस्स णं भंते ! णाणावरणिजं तस्स मोहणिजं जस्स मोहणिजं तस्स णाणावरणिजं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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