Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 478
________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० जघन्यादि आराधना और आराधक १५४१ तीसरे भंग का स्वामी शील सम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है। वह उपरत है और धर्म को भी जानता है। अतः वह मर्वआराधक है। क्योंकि ज्ञान-दर्शन चारित्ररूप रत्नत्रय-जो मोक्ष का मार्ग है, उसकी वह सर्वथा आराधना करता है। श्रुत शब्द से सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन दोनों का ग्रहण किया गया है । जो मिथ्यादृष्टि पुरुष है, वह वस्तुत: विज्ञातधर्मा हो ही नहीं सकता। चतुर्थभंग का स्वामी शीलसम्पन्न भी नहीं और श्रुतसम्पन्न भी नहीं । वह अनुपरत है और धर्म को भी नहीं जानता । वही पुरुष मर्व-विराधक है । क्योंकि सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप रत्नत्रय में मे वह किसी की भी आराधना नहीं करता। इसलिए वह सर्वविराधक है। तात्पर्य यह है कि श्रुत अर्थात् सम्यग्दर्शन युक्त ज्ञान और शील अर्थात् क्रिया, य दोनों समुदितरूप में ही श्रेय (मोक्ष) के मार्ग हैं । सम्यग्ज्ञान युक्त क्रिया से ही अभीष्ट की सिद्धि (मोक्ष की प्राप्ति) होती है । ' जघन्यादि आराधना और आराधक २ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! आराहणा पण्णत्ता ? .२ उत्तर-गोयमा ! तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहाणाणाराहणा, दसणाराहणा, चरिताराहणा । ३ प्रश्न-णाणाराहणा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? .३ उत्तर-गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवकोसिया, मज्झिमा, जहण्णा। ४ प्रश्न-दसणाराहणा णं भंते ! कइविहा . ? - ४ उत्तर-एवं चेव तिविहा वि, एवं चरिताराहणा वि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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