Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 28
________________ २० से वैक्रियरूप बनाकर जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ हैं? हाँ, गौतम ! समर्थ है, विषय यसरी ऐसी शक्ति है, परन्तु कभी ऐसा किया नहीं, करते नहीं और करेंगे नहीं । " इसी तरह बाहर के पुद्गल ग्रहण करके हाथी, घोड़ा, सिंह, व्याघ्र आदि के रूप बनाकर अनेक योजन जाने में समर्थ हैं । उनको हाथी घोड़ा आदि नहीं कहना किन्तु अनगार वे आत्मऋद्धि, आत्मकर्म और आत्म प्रयोग से किन्तु परऋद्धि, परकर्म और परप्रयोग से नहीं जाते । ऐसी विकुर्वणा मायी ( प्रमादी) अनगार करते हैं, अमायी (अप्रमादी) अनगार नहीं करते । मायी अनगार उस बात की आलोयणा किये बिना काल करे तो आभियोगिक ( दास-सेवक ) देवता पने उत्पन्न होते हैं, कोई देवपदवी नहीं पाते । असायी (अप्रमादी ) अनगार लोणा करके काल करे तो आभियोगिक ( सेवक ) देवपने उत्पन्न नहीं होते किन्तु अनाभियोगिक ( इन्द्र: सामानिक, तायतिसक, लोकपाल, श्रहमिन्द्र ) नवग्रैवेयक अनुत्तर विमानों में देवपने उत्पन्न होते हैं । सेवं भंते ! सेवं भंते !! कहना । जाते हैं ( थोकड़ा नं० ३७ ) श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे शतक के छठे उद्देशे में 'ग्रामादि विकुर्वणा' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं

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